Tuesday 1 February 2011

संशय

यह खलबली , यह हड़बड़ी अब रास आ गयी ,
लेकिन शांति हर बार चाहता हूँ ,
ख्वाबो की नुमाइश में ,
अपने किस्सों का भी कारोबार चाहता हूँ ,

धरा से उठना भी नहीं हे ,
लेकिन हाथों में आसमाँ हर बार चाहता हूँ,
ख्वाबो की नुमाइश में ,
अपने किस्सों का भी कारोबार चाहता हूँ ,

झील की ख़ामोशी से प्यार भी हे ,
लेकिन नदी सा वेग हर बार चाहता हूँ
ख्वाबो की नुमाइश में ,
अपने किस्सों का भी कारोबार चाहता हूँ ,

संशय हे तो सृजन हे ,
लेकिन फिर भी एक दृष्टिकोण हर बार चाहता हूँ ,
ख्वाबो की नुमाइश में ,
अपने किस्सों का भी कारोबार चाहता हूँ

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