Tuesday 31 August 2010

कोई सपना देख कर तो देखो

यह कविता पढने से पहले कृपा कर इस विडियो को देखे , यह एक विज्ञापन हे , विश्वास करे मैंने यह कविता इस विज्ञापन के प्रसारित होने से कई साल पहले लिखी थी , परन्तु यह विज्ञापन मैंने अभी २ दिन पहले ब्रांड मैनेजमेंट की क्लास में देखा , तो कुछ अपना सा लगा , फिर उस पुरानी किताब जिसमे में लिखा करता हूँ , उस पर से धुल हटाई तो पाया की मैंने भी कुछ साल पहले ऐसा ही कुछ लिखा था , शायद आप लोगो को पसंद आये ,





कौन कहता हे , सपने सच नहीं होते ,

एक बार सपना देख कर तो देखो,

कभी कुछ बड़ा सोच कर तो देखो ,

आसमां को हाथो में महसूस कर के तो देखो ,

तारो को जमीन पर लाना कोई बड़ी बात नहीं ,

चाँद से दोस्ती कर के तो देखो ,

हाथ खोलकर किस्मत की बातें न करो तुम ,

एक बार मुट्ठी बंद कर के तो देखो ,

माथे की लकीरे बदल जाएँगी ,

कभी दिल से कुछ छह कर तो देखो ,

रेगिस्तान में भी फुल खिला सकते हो ,

एक बार बिज बो कर तो देखो ,

अँधेरे में भी राह ढूंढ़ लोगे ,

रौशनी की आस रख कर तो देखो ,

सपने सारे सच हो जायेंगे ,

एक बार सपना देख कर तो देखो ,

Monday 9 August 2010

जय हिंद

बस बहुत हुआ ,

अब सहा नहीं जाता ,

कुछ कहे बगैर ,

अब रहा नहीं जाता ,

फिर से आजादी का दिवस आया ,

भारत की याद आई ,

अब तो बिना मौको के ,

जय हिंद भी कहा नहीं जाता