Saturday, 25 December 2010

Tuesday, 14 December 2010

बचपन खो गया

सर से शुरू होकर,

आँखों के रास्ते,

उदासी उसके चेहरे पर थी,

गला भी भर आया था,

दिल की धड़कने तेज हो गयी,

पेट में जैसे कुछ रेंगने लगा,

पांव कपकपाने लगे,

आत्मविश्वास , मेहनत , लगन जैसी,

कुछ उल जुलूल बातें कहकर,

लोग उसे और डराने लगे,

अभी तो सांप सिड़ी भी ठीक से खेलना कहा सीखा था,

फिर सफलता की सीड़ी , कामयाबी , मंजिल जैसे,

पाठ क्यों पढ़ाने लगे,

माँ का आँचल ही उसके लिए दुनिया थी,

तो देश और दुनिया की क्यों परवाह करे वो,

उसकी छाती की गर्माहट ही तो पहचानता था बस,

फिर भला ग्लोबल वार्मिंग उसे कैसे समझ में आता,

काश वो इन सारे टेंशन को खूंटी से टांग सकता,

जैसे वो अपने बैग , कपड़ो को टाँगता हे,

बस ऐसा सोचते सोचते वो सो गया,

और एक अनजानी सुबह की तलाश में,

एक बचपन और खो गया,

Wednesday, 29 September 2010

ख्वाहिश

मौलवी गाये आरती ,
पंडित पढ़े अजान ,
खुशियाँ बांटे हम सभी ,
दिवाली हो या रमजान ,

मंदिर बने की मस्जिद बने ,
न गीता कहे न कुरान ,
सब धर्मो का लक्ष्य बस ,
इंसान बना रहे इंसान ,
-अर्पित सिंह परिहार

Tuesday, 31 August 2010

कोई सपना देख कर तो देखो

यह कविता पढने से पहले कृपा कर इस विडियो को देखे , यह एक विज्ञापन हे , विश्वास करे मैंने यह कविता इस विज्ञापन के प्रसारित होने से कई साल पहले लिखी थी , परन्तु यह विज्ञापन मैंने अभी २ दिन पहले ब्रांड मैनेजमेंट की क्लास में देखा , तो कुछ अपना सा लगा , फिर उस पुरानी किताब जिसमे में लिखा करता हूँ , उस पर से धुल हटाई तो पाया की मैंने भी कुछ साल पहले ऐसा ही कुछ लिखा था , शायद आप लोगो को पसंद आये ,





कौन कहता हे , सपने सच नहीं होते ,

एक बार सपना देख कर तो देखो,

कभी कुछ बड़ा सोच कर तो देखो ,

आसमां को हाथो में महसूस कर के तो देखो ,

तारो को जमीन पर लाना कोई बड़ी बात नहीं ,

चाँद से दोस्ती कर के तो देखो ,

हाथ खोलकर किस्मत की बातें न करो तुम ,

एक बार मुट्ठी बंद कर के तो देखो ,

माथे की लकीरे बदल जाएँगी ,

कभी दिल से कुछ छह कर तो देखो ,

रेगिस्तान में भी फुल खिला सकते हो ,

एक बार बिज बो कर तो देखो ,

अँधेरे में भी राह ढूंढ़ लोगे ,

रौशनी की आस रख कर तो देखो ,

सपने सारे सच हो जायेंगे ,

एक बार सपना देख कर तो देखो ,

Monday, 9 August 2010

जय हिंद

बस बहुत हुआ ,

अब सहा नहीं जाता ,

कुछ कहे बगैर ,

अब रहा नहीं जाता ,

फिर से आजादी का दिवस आया ,

भारत की याद आई ,

अब तो बिना मौको के ,

जय हिंद भी कहा नहीं जाता

Thursday, 10 June 2010

नशे के सौदागर

कल रात एक नशे में धुत्त व्यक्ति को देखकर मेरी संवेदनाओ को बहुत आहत पहुंचा , चंद पंक्तिया पेश ऐ खिदमत हे , उम्मीद हे आपको अच्छी लगेगी , कृपया अपनी प्रतिक्रिया देकर मुझे कृतार्थ करे

कौन हे जो गमो में जाम सजाता हे ,
कौन हे जो खुशियों को मयखाने ले जाता हे ,
आखिर उस भोले बच्चे ने आज पूछ ही लिया ,
माँ , बाबा को रोज कोई छोड़ने क्यों आता हे ,

Wednesday, 9 June 2010

क्षणिका

आज बिस्तर पर पड़ी सिलवटो से पूछ लिया हमने ,
की वो कौन सा ख्वाब था जब हमने करवट बदली थी

Monday, 7 June 2010

क्षणिका

लोगों ने ताजमहल बना दिए ,

किसी की याद में ,

और में तुमसे आगे,

और तुमसे ज्यादा,

सोच भी नहीं पाया

Wednesday, 19 May 2010

क्षणिका

इक आँख दूजी से बोले ,
मैं खुश हूँ , तू क्यों नम हैं ,
तो दूजी बोली ,
तू खुश हे मुझे बस यही गम हे ,

Tuesday, 18 May 2010

वो कुछ देर इधर ठहरा होगा................

वो कुछ देर इधर ठहरा होगा ,

उसकी खुशबु यहाँ आज भी हे ,



चलो फिर खुशियों के गीत गुनगुनाये ,

सुर हे , साज हे , आवाज भी हे ,



आज कह दो दिल की बातें सारी ,

वक़्त हे , मौका हे , अल्फाज भी हे ,



हम शिकायत करे तो करे किससे ,

हमें जिसने लुटा उसके सर पर ताज भी हे


मेरा हबीब मुझसे नाराज हो गया ,

आज मालूम हुआ , उसका ऐसा एक अंदाज भी हे ,

Thursday, 29 April 2010

चलिए आज फिर एक शुरुआत की जाए

चलिए आज फिर एक शुरुआत की जाए ,

किसी अनजान चेहरे से मुलाकात की जाए ,

उजालो से तो थक गए कहते कहते ,

आज अंधेरो से ही बात की जाए ,

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Saturday, 24 April 2010

असमंजस

क्यों में
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
और सवालो से घिर जाता हूँ ,
क्यों मुझे
शब्द नहीं मिलते
जिन्हें पिरोकर में कविता बना सकू ,
क्यों कल्पना की उड़ान ,
तुम पर आकर ,
थम जाती हे ,
क्यों में चाँद , तारे , फुल , खुशबु ,
किसी भी एहसास को ,
तुमसे जोड़ नहीं पाता,
क्यों मेरी कलम ,
कमजोर हो जाती हे ,
तुम्हारे बारे में जब सोचने लगता हूँ ,
क्यों मुझे तुमसे खुबसूरत ,
कुछ और दिखाई नहीं देता ,
जिसके साथ में तुम्हारी ,
तुलना कर सकू ,
तुम्हे न में अंको में आंक सकता हूँ ,
न शब्दों में ढाल सकता हूँ ,
कही किसी से सुना था मैंने ,
प्यार को परिभाषित नहीं कर सकते ,
पर तुम्हारे सामने आकर ,
उसे भी
अपने छोटेपन का एहसास होता हे ,
मैं खुदा से जिरह करता था ,
अपनी बदकिस्मती को लेकर ,
माथे की लकीरों से झगड़ता रहता था ,
पर उस मालिक को मुझ पर
दया आ गयी ,
मेरी नाराजगी एक बार में दूर करने को ,
मेरी जिंदगी मैं
तुम आ गयी ,
मैंने खुश होने के कारणों को ,
ढूंढा करता था कभी ,
पर तुमने मुझे जीने का मकसद दे दिया ,
संसार में इतनी भाषाए क्यों हे ,
सोचा करता था में ,
पर अब समझ में आया ,
कोई तुम्हारे बारे में ,
दुनिया को समझाने निकला होगा

Wednesday, 21 April 2010

क्षणिकाए

ख्वाबो की पतंग उड़ाने को बेताब हूँ ,
पर जिंदगी की डोर सुलझती ही नहीं ,
सुलझाने की कोशिश करता हूँ ,
तो सिरा नहीं मिलता ,
सिरा जो मिला तो ख्वाब गुम गए ,
ख्वाब को ढूंढा ,
तो डोर को फिर उलझा पाया ,

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सपनो की उडान को थकने नहीं दूंगा ,
हौसलों के तूफान को थमने नहीं दूंगा ,
लहरों पर होगा बसेरा मेरा ,
लहरों से किनारों को उजड़ने नहीं दूंगा ,

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काँटों के बीच फूलो सा खिलना सीखो ,
जिंदगी में गमो को पीना सीखो ,
मुश्किलों में उम्मीद के दिए जलाये रखना ,
सपनो को अपने दिल में सजाये रखना ,
एक दिन होगा तेरा जहाँ सारा ,
इस आस को दिल में बनाये रखना ,

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मैं जाग रहा था ,
ताकि देश सो सके ,
मैं मौन था ,
ताकि देश हँस सके ,
मैं गोलियां खा रहा था ,
ताकि देश चैन से खाना खा सके ,
मैं हमेशा के लिए सो गया ,
ताकि देश जाग सके ,
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