चलिए आज फिर एक शुरुआत की जाए
Wednesday, 29 September 2010
ख्वाहिश
मौलवी गाये आरती ,
पंडित पढ़े अजान ,
खुशियाँ बांटे हम सभी ,
दिवाली हो या रमजान ,
मंदिर बने की मस्जिद बने ,
न गीता कहे न कुरान ,
सब धर्मो का लक्ष्य बस ,
इंसान बना रहे इंसान ,
-अर्पित सिंह परिहार
1 comment:
Priyanka Soni
4 October 2010 at 21:34
बहुत सुन्दर !
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बहुत सुन्दर !
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