Saturday 9 February 2013

मॉल की दुनिया


 मेरे बड़े से शहर मैं ,
एक छोटा सा शहर
बसता  हे शौपिंग मॉल मैं
गरीबी का मजाक उड़ाता
महंगाई  को ठेंगा दिखाता
साकेत में बसता हे वो ,
नहीं पता सामने की बस्ती मैं ,
पीने का पानी हे की नहीं ,
पर उसके फव्वारे हमेशा
चलते रहते हे ,
प्रेमी जोडियो की अटखेलियो के लिए ,
मॉल की सुरक्षा मैं तैनात ,
उस पर नजर गड़ाए
सुदूर गाँव से आया इक सिपाही ,
क्या सोचता होगा उसे देखकर ,
सोचता हूँ मैं ,
 जब माँ ने दुलार से ,
कहा की बेटा  नहीं पसंद हे तो ,
फेंक दो , उस कई चंद सौ रुपये के ,
खाने के सामान को ,
 क्या सोचता होगा वो ,
तभी नज़र पढ़ती हे शीला जी के ,
600 रुपये वाले अन्न सुरक्षा वाले
बड़े से पोस्टर पर
.. .............

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