Saturday 24 April 2010

असमंजस

क्यों में
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
और सवालो से घिर जाता हूँ ,
क्यों मुझे
शब्द नहीं मिलते
जिन्हें पिरोकर में कविता बना सकू ,
क्यों कल्पना की उड़ान ,
तुम पर आकर ,
थम जाती हे ,
क्यों में चाँद , तारे , फुल , खुशबु ,
किसी भी एहसास को ,
तुमसे जोड़ नहीं पाता,
क्यों मेरी कलम ,
कमजोर हो जाती हे ,
तुम्हारे बारे में जब सोचने लगता हूँ ,
क्यों मुझे तुमसे खुबसूरत ,
कुछ और दिखाई नहीं देता ,
जिसके साथ में तुम्हारी ,
तुलना कर सकू ,
तुम्हे न में अंको में आंक सकता हूँ ,
न शब्दों में ढाल सकता हूँ ,
कही किसी से सुना था मैंने ,
प्यार को परिभाषित नहीं कर सकते ,
पर तुम्हारे सामने आकर ,
उसे भी
अपने छोटेपन का एहसास होता हे ,
मैं खुदा से जिरह करता था ,
अपनी बदकिस्मती को लेकर ,
माथे की लकीरों से झगड़ता रहता था ,
पर उस मालिक को मुझ पर
दया आ गयी ,
मेरी नाराजगी एक बार में दूर करने को ,
मेरी जिंदगी मैं
तुम आ गयी ,
मैंने खुश होने के कारणों को ,
ढूंढा करता था कभी ,
पर तुमने मुझे जीने का मकसद दे दिया ,
संसार में इतनी भाषाए क्यों हे ,
सोचा करता था में ,
पर अब समझ में आया ,
कोई तुम्हारे बारे में ,
दुनिया को समझाने निकला होगा

5 comments:

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  2. bahut khoob...
    kya baat kahi hai
    संसार में इतनी भाषाए क्यों हे ,
    सोचा करता था में ,
    पर अब समझ में आया ,
    कोई तुम्हारे बारे में ,
    दुनिया को समझाने निकला होगा

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  3. thanx for ur comments will encourage me to pen more poems

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  4. nthr gr8 post..n last four lines..i nvr tho8 sm1 cn sound dt effctv.. :)

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