Wednesday 21 April 2010

क्षणिकाए

ख्वाबो की पतंग उड़ाने को बेताब हूँ ,
पर जिंदगी की डोर सुलझती ही नहीं ,
सुलझाने की कोशिश करता हूँ ,
तो सिरा नहीं मिलता ,
सिरा जो मिला तो ख्वाब गुम गए ,
ख्वाब को ढूंढा ,
तो डोर को फिर उलझा पाया ,

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सपनो की उडान को थकने नहीं दूंगा ,
हौसलों के तूफान को थमने नहीं दूंगा ,
लहरों पर होगा बसेरा मेरा ,
लहरों से किनारों को उजड़ने नहीं दूंगा ,

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काँटों के बीच फूलो सा खिलना सीखो ,
जिंदगी में गमो को पीना सीखो ,
मुश्किलों में उम्मीद के दिए जलाये रखना ,
सपनो को अपने दिल में सजाये रखना ,
एक दिन होगा तेरा जहाँ सारा ,
इस आस को दिल में बनाये रखना ,

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मैं जाग रहा था ,
ताकि देश सो सके ,
मैं मौन था ,
ताकि देश हँस सके ,
मैं गोलियां खा रहा था ,
ताकि देश चैन से खाना खा सके ,
मैं हमेशा के लिए सो गया ,
ताकि देश जाग सके ,
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